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[8]- जाहिली के ज़माने की रस्म: शर्त लगाने के बाद एक जानवर खरीदा और काटा जाता था, फिर दस लकड़ी के तीर (बाण) को एक थैले मे रखते थे, उन मे से सात तीरों पर (जीतने वाले) और तीन तीरो पर(हारने वाले) लिखा जाता था तब क़ुरआ (नामो की परची डाली जाती थी) के ज़रीये थौले से एक एक लकड़ी निकाली जाती थी। और वह सारा गोश्त उन सात लोगो का हो जाता था जिन के नाम (जीतने वाले) तीर निकलते थे और जानवर की क़ीमत हारने वाले तीन लोगो को देना पड़ती थी, जबकि गोश्त मे से उनको कुछ भी नही मिलता था। इस तरह के जानवर का गोश्त क़ुरआन हराम (नाज़ाएज़) क़रार दिया है। इस वाक़ेआ से मालूम होता है: अज़लाम क़ुरआ (नामो की परची डालना) की ख़ास लकड़ीयो को कहते है।
[9]- सुरए बक़र: की 109 वी आयत मे काफ़िरो का मुसलमानो को अपने रास्ते से गुमराह करने का वंर्णन हुआ है। अल्लाह ने हुक्म दिया: तुम अल्लाह का हुक्म आ जाने तक सबर करो। इस लिये मुसलमान अल्लाह के हुक्म का जो काफ़िरो को मायूस करने वाला था, इन्तेज़ार कर रहे थे ।
[10]- क़ुरआन मे आया है: (فَكَفَرَتْ بِأَنْعُمِ اللّهِ فَأَذَاقَهَا اللّهُ لِبَاسَ الْجُوعِ وَالْخَوْفِ بِمَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ) (सूरह नहल आयत 112)
[11] - मुर्तिया, ऐसे पत्थरो को कहा जाता था जन पर शक्ले बनी होती थी। लेकिन (नुसुब) बग़ैर शक्ल वाले पत्थरो को कहते थे जो काबे के चारो तरफ लगे हुये थे और उस के सामने क़ुर्बानी के जानवर काटे जाते थे और उन के ख़ून को उन पत्थरो पर मला जाता था।
[12] - क्योकि जानवरो के मरने के वक़्त ख़ून सबसे ज़्यादा खराब होता है और ज़हर फैलाता है इसी लिये ऐसे जानवर जिन का दम घुटने, सीग लगने, गिरने, मार खाने या घसीटने से मरते वक़्त पूरा ख़ून ना निकल सका हो इस्लाम ने नाज़ाएज़ करार दिया है। (तफ़सीरे नमूना)
[13] - हदीस मे है: (لا صلاۃ الا بطھور) नमाज़ तहारत (वुज़ु, ग़ुस्ल, तयम्मम) के बग़ैर सही नही है।
[14] - (لا یمسہ الا المطھرون)
[15] - इमाम रेज़ा (अ) वुज़ू के बारे कहते है : یکون العبد طاھرا اذا قام بین یدی الجبار (अल्लाह के हुज़ुर मे खड़े होने के लिये एक तरह की पाकीज़गी और अदब है।)
مطیعا لہ فیما امرہ(एक तरह की बन्दगी और एताअत है)
نقیا من الادناس (बुराईयो सो दूरी है।)
ذھاب الکسل و طرد النعاس (बे हाली और सुस्ती से दूरी है।)
و تذکیۃ الفواد (नमाज़ के लिये तैयार होना और रूह को मज़बूत करना है) वसाएल अश शीया जिल्द 1 पैज 257 तफ़सीरे नमूना से नक़्ल ।
[16] - मुसनदे इमाम अहमद इब्ने हम्बल जिल्द 1 पेज 398 और दूसरी किताबो मे ।
[17] - सूरए तौबा की 77 वी आयत मे है कि वादा तोड़ना नेफ़ाक़ पैदा होने का सबब है।
[18]- सूरए सफ़ आयत 14
[19] - अल्लाह के बेटे और दोस्त होने का दावा इन्जीले युहन्ना बाब 8, जुमला 41 मे भी किया गया है।
[20] - अन्बिया का क़त्ल, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के आने की ख़बरो को छिपाना, वादो को तोड़ना, आसमानी किताबो मे तहरीफ़ करना, शहर मे दाख़िल होने से डरना, गौसाला को पूजना, बहाने बाज़ी करना, ख़्वाहिशो पर जान देना, एक तहर का खाना खाने पर सर्ब न करना, उनके बुरे कामो के नमूने और अल्लाह की उन्हे दी हुई सज़ाये, पहाड़ का अपनी जगह से उकड जाना, चालीस साल आवारा फिरना, उनका मसख़ (जानवरो की शक्ल मे हो जाना) शमिन्दगी...... यह सब अल्लाह की उन्हे दी हुई सज़ाओ के नमूने है।
[21] - नहजुल बलाग़ा, कलिमाते क़िसार 147
[22] - तारीख़ मे इसके नमूने: हज़रते मूसा (अ) का लोगो से जुदा होना, नबीयो का ऐतेकाफ़ (मस्जिद मे कई दिन ऐबादत के लिये रहना) करना, पैग़म्बरों पर वहीय न आना, ग़ैबते सुग़रा व कुबरा। (कुछ अरसे या लम्बे अरसे लोगो से ग़ायब रहना)
[23] - नेमते जैसे: दरियाए नील पार करना, कोहे तूर का उखड़ जाना, मन व सलवा (आसमानी खाना) आना, पानी की बारह नहरे जारी होना........ बनी इसराइल को दी गयी ख़ास नेमते थी।
[24]- इसके अलावा जालूत के क़िस्से मे हमने पढ़ा कि: हम जालूत से लड़ने की ताक़त नही रखते। (لا طاقۃ لنا الیوم....) सूरह बक़रा आयत 249
[25] - सुरए अनफ़ाल की चौबीसवी आयत में भी इस बात का ज़िक्र हुआ है कि पैग़म्बर की दावत ज़िन्दगी बख़्शती है। (دَعَاكُم لِمَا يُحْيِيكُمْ)
[26]- हाथ और पैर उतने ही काटे जायेगे जितने चोर के काटे जाते है(हाथ की उँगलीयाँ)उलटे तौर पर यानी दाहने हाथ की उँगलीयाँ और बायें पैर की।
[27] - तफ़सीरे अलमिज़ान में है कि चार सज़ाओ मे से एक को चुनने का इमाम को हक़ है।और अगर क़त्ल होने वाले के वारिस चाहे तो माफ़ कर सकते हैऔर उस समय सिर्फ़ एक सज़ा दी जायेगी।
[28] - हदीसों में वसीला इमाम के मानी में इस्तेमाल हुआ है। (تقربوا بالامام) (तफ़सीरे साफ़ी) और दूसरी जगह पर इस तरह आया है। (ھم العروۃ الوثقی والوسیلۃ الی اللہ) (साफ़ी)
तवस्सुल, ऐसा विषय है। जो अकसर अहले सुन्नत की हदीसों की किताबो में आया है। जैसे सवाएक़े इब्न् हजर, सोनने बहीक़ी, सहीहे दारेमी, में इस बारे में हदीसें है। और वफ़ाऊल वफ़ा की भी तीसरी जिल्द पेज 1371 पर भी हदीस आयी है।
और सूरह निसा की 64वी, सूरह युसुफ़ की 97वी,और सूरह तौबा की 114वी यह सारी आयतें भी तवस्सुल पर रौशनी डालती है।
[29] - सूरह हज की 22वी आयत में आया है कि जब भी वह लोग नर्क की आग से निकलना चाहेंगें और ग़म से छुटकारा पाना चाहेंगें दोबारा नर्क की तरफ़ पलटा दिये जायेंगें। (کلما ارادوا ان یخرجوا منھا من غم اعیدوا فیھا)
[30] -हदीस में है कि एक चोर जिसका हाथ काटा गया था। उसने पैग़म्बर (स) से पूछा: क्या मेरे लिये तौबा का कोई रास्ता है? आप ने फ़रमाया: हाँ तुम आज गुनाह से उसी तरह पाक हो चुके हो जिस तरह अपनी माँ के पेट से बेगुनाह पैदा हुए थे। (तफ़सीरे अलमिज़ान)
[31] - कुछ लोग आयतुल्लाह, उलामा, अदालत और क़ानून के पीछे इसलिये जाते है कि उनके मन के मुवाफ़िक़ फ़ैसला हो जाये। आयत में इस बात से भी मना किया गया है।
[32] - तौरेत के सफ़रे तस्नीया के तेईसवे हिस्से में औरत से मुह काला करने की सज़ा बयान हुई है।
[33] - हज़रत अली (अ) से नक़्ल हुआ है कि आप फ़रमाते है:انا رباني هذه الامة (ْइस उम्मत के रब्बानी हम है। तफ़सीरे मराग़ी। इमाम सादिक़ (अ) भी फ़रमाते है: रब्बानीयून वह मार्गदर्शक है जो अहले बैत से हो। (तफ़सीरे साफ़ी) और इब्ने अब्बास को भी (हिबरुल उम्मा) की उपाधी दी गयी है।
[34] - पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: अगर किसी ने दो रुपये के लिये भी ग़लत फ़ैसला दिया तो वह इस आयत के आख़री वाक्य में शामिल हो जायेगा। (هم الكافرون) तफ़सीरे साफ़ी।
[35]- हाँ, मर्द और औरत, मालिक और आज़ाद नौकर, मुसलमान और काफ़िर, क़िसास (बदला) के हुक्म में एक दूसरे से अलग है। जिन का वर्णन मसाएल की किताबों में किया गया है।
[36] - तौरेत के सिफ़रे ख़ुरूज की 21वा,22वा,26वा अध्याय।
[37] - इंजील मत्ती के पाँचवे अध्याय की चौथी आयत में आया है कि: ऐसा न सोचना कि मैं तौरेत और नबीयों की दूसरी किताबों को ग़लत कहने आया हुँ। बल्कि मैं उन्हे पूरा करने आया हुँ।
[38] -इस सूरह की 15वी आयत में आया है कि क़ुरआन नूर है। और 24वी आयत में है कि तौरेत नूर है। और इस आयत में इंजील को नूर कहा गया है।
[39] - कुरआन में, 17 बार आसमानी किताबों के प्रमाण का वर्णन किया गया है।
[40] - यहूदियों और ईसाईयों का नाम नमूने के तौर लिया गया है। वर्ना तो किसी भी काफ़िर की बड़ाई को नही माना जाना चाहिये।
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