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निसंदेह अल्लाह ने बनी इसराइल से वादा लिया और हमने उनमें से बारह मार्ग दर्शकभेजे और अल्लाह ने यह भी कहा कि हम तुम्हारे साथ है। अगर तुम ने नमाज़ क़ाएम की औरज़कात अदा की और हमारे रसूलों (दूतों) पर ईमान लाये और उन की मदद की और अल्लाह कीराह में क़र्ज़ दिया तो हम यक़ीनन तुम्हारे गुनाहों (पापों) को माफ़ (क्षमा) करदेगे। और तुम्हे ऐसी जन्नत (स्वर्ग) में पहुचायेगे जिन के नीचे नहरे जारी होगी।फ़िर इन सब बाद जो कुफ़्र करेगा वह सही रास्ते से भटक गया है।

आयत की सूक्ष्मताएं:

बनी इसराइल के बारह मार्गदर्शक थे जो हज़रते मूसा (अ) के नायब (उत्तराधिकारी) औरबनी इसराइल के बारह क़बीलों के सरदार थे। पैग़म्बर (स) से हदीस है फ़रमाते है : बनीइसराइल के रहबरों की तरह मेरे बाद मेरे भी बारह मार्गदर्शक होंगे।[16]

अहले बैत के दुश्मन बेकार में कोशिश करते है कि इस संख्या को ख़ुलाफ़ा एराशेदीन, ख़ुलाफ़ा ए बनी उमय्या और ख़ुलाफ़ा ए बनी अब्बास पर पूरी करें। जबकि किसीभी तरह यह संख्या पूरी नही हो पाती। जबकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की दसियो हदीसों मेंउन बारह लोगों के नाम का वर्णन हुआ है जिन में से पहले हज़रत अली (अ) और आख़रीहज़रत महदी (अ) है।

(عَزَّرْتُمُوهُمْ) अज़र से बना है और ऐहतेराम के साथ मदद करने के मायनी में है।तअज़ीर, मुजरिम की जुर्म छोड़ने में मदद करने को कहते है। तो इस का मतलब है किइस्लामी सज़ाये शिक्षा के लिये है इन्तेक़ाम के लिये नही।

(سَوَاء السَّبِيلِ) बीच का ऐसा रास्ता कि उस से इधर उघर होने से इंसान नीचे गिरसकता है।

आयत के संदेश:

1. अल्लाह के हमारे साथ होने के लिये चंद शर्तेहै: नमाज़, ज़कात, ईमान, नबियों की मदद करना, अल्लाह की राह में ख़र्च करना, इनकेबग़ैर अल्लाह की रहमतें बंद हो जाती है।

2. नमाज़, ज़कात और अल्लाह की राह में ख़र्चकरना, सारे आसमानी धर्मों में है।

3. नबियों पर सिर्फ़ ईमान रखना काफ़ी नही है।बल्कि उन की मदद करना भी ज़रूरी है। (وَعَزَّرْتُمُوهُمْ)

4. सिर्फ़ मज़हब के वाजिब (अनिवार्य) कामों का करदेना काफ़ी नही है। बल्कि वाजिब व सून्नत दोनो काम बनाने वाले है। (नमाज़ व ज़कात वअल्लाह की राह में ख़र्च करना)

5. अल्लाह के भक्तों की मदद करना, अल्लाह की मददकरना है। (وَأَقْرَضْتُمُ اللّهَ)

6. धर्म का मार्गदर्शक अल्लाह की तरफ़ से होनाचाहिये। (بَعَثْنَا) और नबियों (दूतों) का भेजा जाना भी अल्लाह के हुक्म से होनाचाहिये।

7. नमाज़ व ज़कात व अल्लाह की राह में ख़र्च, कामतलब मार्गदर्शक के होने से समझ में आता है। वह भी सारे नबियों के मार्गदर्शन केसाथ, कुछ के नही।

8. मार्गदर्शक अगर ख़ुद लोगों में से हो तोकामयाब है। (وَبَعَثْنَا مِنهُمُ)

9. जन्नत (स्वर्ग) मेंहनत से मिलेगी न कि बहानोंसे, अगर नमाज़, ज़कात, पैग़म्बरों (दूतों) पर ईमान, उनसे सहयोग करना और अल्लाह कीराह में खर्च करना, है तो जन्नत है।

10. स्वर्ग पवित्र लोगो की जगह है लिहाज़ा स्वर्ग में जाने के लिये पहलेपाक होना पड़ेगा फिर उसमें जा सकता है। (لَّأُكَفِّرَنَّ ......وَلأُدْخِلَنَّكُمْ)

11. ईमान और नेक कर्म से अल्लाह माफ़ (क्षमा) कर सकता है।(لَّأُكَفِّرَنَّ)

12. अल्लाह की रहमत के हासिल करने के लिये वादों, तमाम दलीलों और शर्तो कोबयान कर देने के बाद किसी के लिये बहाने की गुँजाईश नही है।

فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ لَعنَّاهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْقَاسِيَةً يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِ وَنَسُواْ حَظًّا مِّمَّاذُكِّرُواْ بِهِ وَلاَ تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىَ خَآئِنَةٍ مِّنْهُمْ إِلاَّقَلِيلاً مِّنْهُمُ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاصْفَحْ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّالْمُحْسِنِينَ 13

अनुवाद:

फिर उनकी वादा ख़िलाफ़ी पर हमने उन पर लानत (फिटकार) भेजी और उनके दिलों कोसख़्त बना दिया। वह हमारे कलिमात (वाक्यों) को उन की जगह से हटा देते है। औरउन्होने हमारी याद दहानियों को ज़्यादातर भुला दिया है। और तुम्हे उनके विश्वासघातकी बराबर ख़बर मिलती रहेगी। (कि रोज़ाना एक नया धोखा) सिवाए कुछ लोगो के (जोसंगदिल, मिटाने वाले, धोखा देने वाले नही है।) लिहाज़ा उन्हे छोड़ दो और उनकीग़लतियों को माफ़ कर दो। निसंदेह अल्लाह अहसान करने वालो को दोस्त रखता है.

आयत की सूक्ष्मताएं:

1-इस सूरह की पहली आयत में वादा निभाने के बारे में, और इस से पहले वाली आयत मेंअल्लाह का बनी इसराइल से पैमान (समझौता) और अल्लाह के वादे से उनकी बेध्यानी का औरइस आयत में वादा न निभाने के प्रभाव का वर्णन हो रहा है। इस सूरह को अहद (सौगंध) भीकहते है। और आयतों की जमा बन्दी भी महत्वपुर्ण वादों को न निभाने के बारे मेंहोशियार करती है।

आयत के संदेश:

1. वादा तोड़ना, अल्लाह की रहमत न मिलने और संगदिल हो जाने का कारण बन जाता है। [17](وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَاسِيَةً......لَعنَّاهُمْ)

2. वादा तोड़ना संगदिली का कारण और संगदिली धर्मका ग़लत इस्तेमाल और उसको मिटाने का कारण बनता है। (قُلُوبَهُمْ قَاسِيَةًيُحَرِّفُونَ)

3. बनी इसराइल, हमेंशा विश्वासघात किया करते थे।(وَلاَ تَزَالُ)

4. बनी इसराइल की वादा ख़िलाफ़ी और उसकी सज़ा सेसबक़ लेना चाहिये। (فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ)

5. धर्म में फेरबदल करने वाला अपने बहुत बड़ेख़ज़ाने को खो बैठता है। (يُحَرِّفُونَ ....ِ وَنَسُواْ حَظًّا)

6. क्षमा और माफ़ कर देना, बेहतरीन उपकार हैं।(فَاعْفُ .......الْمُحْسِنِينَ)

وَمِنَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّا نَصَارَى أَخَذْنَا مِيثَاقَهُمْ فَنَسُواْحَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَوَالْبَغْضَاء إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ اللّهُ بِمَاكَانُواْ يَصْنَعُونَ 14

अनुवाद:

और जिन लोगो का कहना है कि हम ईसाई (हज़रत ईसा (अ) के मानने वाले) है। हम नेउनसे भी वादा लिया और उन्होने (भी बनी इसराइल की तरह)हमारी बातों को भुला दिया तोहमने सज़ा के तौर पर उनके दरमियान दुश्मनी और नफ़रत को क़यामत तक के लिये रास्ता देदिया और जल्द ही अल्लाह उन्हे उन बातो की ख़बर देगा जो वह अंजाम दे रहे थे।

आयत की सूक्ष्मताएं:

1-इससे पहली वाली आयत में, बनी इसराइल के वादा तोड़ने का वर्णन था और यहाँ पर ईसाईयोंके वादा तोड़ने की बात है। और इस जगह पर अल्लाह ने सारे बनी इसराइल वालों को वादातोड़ने वाला कहा है। (सिवाए कुछ लोगो के- إِلاَّ قَلِيلاً مِّنْهُمُ) इस आयत केशुरु में ही उनके एक गिरोह को वादा तोड़ने वाला कहा है। (وَمِنَ الَّذِينَ) इससेमालूम होता है कि यहूदी ईसाइयों से ज़्यादा वादा तोड़ने वाले है। (तफ़सीरे नमूना)

2-नसारा, नसरानी की जमा है, क्योंकि शायद हज़रत ईसा (अ) के मानने वालो का नारा [18](نحنانصارالله) हम अल्लाह के दोस्त है, था। इस लिये ईसाइयों को नसारा कहते है।

3-َ الْبَغْضَاء दिली दुश्मनी को कहते है। और الْعَدَاوَةَ, ज़ाहिरी दुश्मनी को।

4-कुछ नसीहतों (याद दहानियों) को भूल जाने की ही वजह से तौहीद (एक अल्लाह) को छोड़ करतसलीस (त्रिकोण, तीन को एक अल्लाह मानना) तक जा पहुचे। और इस्लाम के नबी (स) कीदावत को क़बूल करने की बजाए उन के बारे में बतायी गयी निशानियों को छुपाने लगे।

आयत के संदेश:

1. दावा ज़्यादा है, लेकिन उस पर अमल और उसकीहक़ीक़त कम है। (قَالُواْ إِنَّا نَصَارَى)

2. फूट पड़ने की असली वजह अल्लाह को भूल जाना है।और इत्तेहाद (एकता) तौहीद (अल्लाह को एक मानना) की वजह से है। (فَنَسُواْ.......فَأَغْرَيْنَا)

3. अल्लाह की याद दहानियों को भूलाने, हक़ीक़तोंको छुपाने और बाईबिल की भविष्यवाणियों को भूल जाने का अंत फूट पड़ना और दुश्मनी है।

4. दूसरों के वादा तोड़ने पर मिलने वाली सज़ाओ सेसबक़ लो (हमने ईसाइयो से वादा लिया, उन्होने उसे भूला दिया इस लिये सज़ा औरगिरफ़्तार हुए)

5. यहूदी और ईसाई क़यामत तक बाक़ी रहेगें और उनकीनस्ल ख़त्म नही होगी। (إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ)

6. फूट पड़ना और दुश्मनी होना अल्लाह की सज़ाओमें से एक है। (فَنَسُواْ ........فَأَغْرَيْنَا)

7. तुम्हारे सब कामो को अल्लाह देख रहा है। औरईनाम व सज़ा उसके हाथ में है। (يُنَبِّئُهُمُ اللّهُ بِمَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ)

يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ كَثِيرًامِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ قَدْ جَاءكُممِّنَ اللّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُّبِينٌ 15

अनुवाद:

ऐ अहले किताब (ईसाई व यहूदी) हमारा दूत तुम्हारे पास आ चुका है, जो अल्लाह कीकिताब की बहुत सी बातों को बताता है जिन्हे तुम छुपाते थे। और बहुत सी बातों कोछोड़ देता है। तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से नूर (रौशनी) और स्पष्ट किताब आ चुकीहै।

आयत के संदेश:

1. इस्लाम एक ऐसा संस्सारिक धर्म है। जो सम्पूर्णसंसार के लिये है। और सारे धर्मों को हक़ और अपनी तरफ़ दावत देता है। (يَا أَهْلَالْكِتَابِ)

2. लोगों को दावत देने और उनको मार्गदर्शन से,यहाँ तक कि अहले किताब से, जो वादा तोड़ने वाले है, मायूस नही होना चाहिये। (يَاأَهْلَ الْكِتَابِ)

3. नबीयों की एक ज़िम्मेदारी यह भी है।कि उनचीज़ो को बयान करे जिन्हे छिपाया गया है। (يُبَيِّنُ......)

4. छुपी हुई बातो को बताना, अंतर्यामी होने कीनिशानी है। और नबीयों को पहचानने के रास्तो में से एक है। (तफ़सीरे अल मीज़ान)

5. तौरैत और इंजील में फेर बदल किया गया है।(كَثِيرًا مِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ)

6. इस्लाम दुनिया का सबसे आसान और सबसे ज़्यादाछूट देने वाला धर्म है। (وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ)

7. मार्गदर्शन का मतलब यह है कि ज़रूरत के लिहाज़से बातें बताई जायें न कि लोगों को ज़लील किया जाये। (وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ)

8. क़ुरआन के बग़ैर दुनिया में रौशनी नही होसकती। (قَدْ جَاءكُم مِّنَ اللّهِ نُورٌ)

يَهْدِي بِهِ اللّهُ مَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَهُ سُبُلَ السَّلاَمِ وَيُخْرِجُهُممِّنِ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِهِ وَيَهْدِيهِمْ إِلَى صِرَاطٍمُّسْتَقِيمٍ 16

अनुवाद:

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