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अल्लाह उन लोगो को, जो उसकी मर्ज़ी चाहते है उस (नूर) के ज़रीये सलामती के रास्तों की तरफ़ मार्गदर्शन करता है। और उन को अपने लुत्फ़ व करम से अन्धेरों से निकाल कर रौशनी की तरफ़ लाता है और उन्हे सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत (मार्गदर्शन) करता है।
आयत की सूक्ष्मताएं:
सलाम, अल्लाह के नामों में से एक है। (السلام, المؤمن, المهيمن....) जन्नत (स्वर्ग) को भी (دارالسلام) कहा जाता है। लिहाज़ा मार्गदर्शन सलाम के रास्तों, यानी अल्लाह और जन्नत और इन दोनो सलाम तक पहुचना और (سُبُلَ السَّلاَمِ) होना चाहिये जो हक़ वालों के लिये है।
सलाम, समाज, परिवार, वंश, सोच व आत्मा व इज़्ज़त सबकी सलामती के लिये है।
आयत के संदेश:
1. सिर्फ़ वह लोग हिदायत सकते है जो अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करना चाहते है। वह लोग जो शोहरत व माल व अपनी मर्ज़ी व इन्तेक़ाम चाहते हों कभी भी मार्गदर्शित नही हो सकते।
2. अल्लाह की मर्ज़ी चाहने वालो के सबसे बड़े चरितार्थ ग़दीर ख़ुम को मानने वाले और दोस्त रखने वाले हैं इसलिये कि (رضيت لكم الاسلام دينا) इस दिन नाज़िल हुई।
3. सलामती और भलाई के सभी रास्ते अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने में है। और जो उसके सिवा किसी और की मर्ज़ी पर चलना चाहेगा वह भटक हो जायेगा।
4. नूर (रौशनी) एक है और अंधेरे बहुत ज़्यादा। (الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ)
5. हक़ की राह में बहुत से छोटे छोटे रास्ते असली रास्ते तक पहुचाते है। سُبُلَ السَّلاَمِ (सलामती का रास्ता) صِرَاطٍ مُّسْتَقِيم (कामयाबी का रास्ता) तक जाता है। वह सभी लोग जो अलग अलग हालात में तरह तरह की ज़िम्मेदारीयों को अंजाम देने में, अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करना चाहते है सब एक रास्ते के मुसाफ़िर है।
6. सिर्फ़ नूर (रौशनी) और किताब काफ़ी नही है बल्कि अल्लाह का करम और इरादा भी ज़रुरी है। (بِإِذْنِهِ)
7. लक्ष्य (मक़सद) एक है मगर उस तक पहुचने के रास्ते बहुत सारे है। (सलामती का रास्ता अल्लाह की मर्ज़ी तक पहुचाता है।)
8. क़ुरआन और इस्लाम ने लोगों, समाज, आत्मा, जिस्म, फ़िक्र, और हुकूमत की हर तरह की सलामती की ज़िम्मेदारी ली है। (سُبُلَ السَّلاَمِ)
9. इंसान क़ुरआन के साये में मिल जुल कर अम्न के साथ ज़िन्दगी जी सकता है। (سُبُلَ السَّلاَمِ)
10. क़ुरआन, शक, इच्छा, खुराफ़ात, बुरे काम, परेशानी और हर तरह की जिहालत से ठीक करने वाली दवा है।
لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَآلُواْ إِنَّ اللّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ مِنَ اللّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ أَن يُهْلِكَ الْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ وَمَن فِي الأَرْضِ جَمِيعًا وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا يَخْلُقُ مَا يَشَاء وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ 17
अनुवाद:
निसंदेह वह लोग काफ़िर हो गये जो कहते है। कि ईसा इब्ने मरियम ही ख़ुदा है। (ऐ पैग़म्बर उनसे) कह दीजिए: अगर अल्लाह ईसा इब्ने मरियम, उनकी माँ और दुनिया के सारे लोगो को मारना चाहे, तो कौन उन्हे बचा सकता है? आसमानों, ज़मीन और जो कुछ उसके दरमियान है सब पर अल्लाह की हुकूमत है। जिस चीज़ को चाहे पैदा करे, अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
आयत की सूक्ष्मताएं:
ईसाई अल्लाह के बारे में कुछ बेबुनियाद दावा करते है। क़ुरआन जिन कि तरफ़ इस तरह इशारा करता है:
1- तीन ख़ुदा (لاتقولواالثلاثة...) (सूरह निसा आयत 171)
2- पैदा करने वाला ख़ुदा, तीन ख़ुदाओं में से एक है।(बाप ख़ुदा), जिस को क़ुरआन रद्द करता है। ( ان الله ثالث ثلاثة....) (सूरह मायदा आयत 73)
3- यह आयत अल्लाह, ईसा और रूहुल क़ुदुस के एक होने को रद्द् करती है।
n (يَخْلُقُ مَا يَشَاء) ईसा (अ) के बग़ैर बाप और आदम (अ) के बगैर माँ बाप से पैदा होने की तरफ़ इशारा है।
आयत के संदेश:
1. इस्लाम, कुफ़्र, शिर्क और ख़ुराफ़ात चाहे वह जिस मज़हब में हो, उसका विरोधी है। (किसी को उसकी शान से ज़्यादा बढ़ाना भी एक तरह का कुफ़्र है।)
2. अगर ईसा (आप की श्रध्दा के अनुसार) ख़ुदा है तो किस तरह वह मार डाले गये। और सलीब (करास) मज़लूमियत का निशान किस तरह हो गया? ख़ुदा को तो लोगों का शिकार नही होना चाहिये।
3. ख़ुदा किसी औरत के पेट में नही आ सकता। (ईसा इब्ने मरियम)
4. मिटना और ख़त्म होना ऐसे ख़ुदा के साथ जो वाजिबुल वुजूद (हमेंशा बाक़ी रहने वाला) हो मेंल नही खाता।
5. इंसान होने में ईसा (अ), उनकी माँ, और पूरी दुनिया के लोग एक जैसे है। (الْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ وَمَن فِي الأَرْضِ جَمِيعًا)
6. अल्लाह की क़ुदरत किसी ख़ास हुकूमत तक सीमीत नही है। बल्कि वह बग़ैर बाप के भी बच्चा पैदा कर सकता है। (عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ)
وَقَالَتِ الْيَهُودُ وَالنَّصَارَى نَحْنُ أَبْنَاء اللّهِ وَأَحِبَّاؤُهُ قُلْ فَلِمَ يُعَذِّبُكُم بِذُنُوبِكُم بَلْ أَنتُم بَشَرٌ مِّمَّنْ خَلَقَ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاء وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ 18
अनुवाद:
यहूदी व ईसाई कहते है: हम अल्लाह के बेटे और ख़ास दोस्त है। तो ऐ पैग़म्बर आप कह दीजीये कि फिर ख़ुदा तुम पर तुम्हारे गुनाहों की वजह से सज़ा क्यो देता है? (ऐसा नही है) बल्कि तुम लोग भी सारे इंसानों की तरह इंसान हो जिसे उसने पैदा किया है। (उनमें और तुम में कोई फर्क़ नही है) अल्लाह जिसको चाहता है बख़्श देता है और जिसको चाहता है सज़ा देता है, और आसमानों, ज़मीन और जो कुछ उसके दरमियान है सब पर अल्लाह की हुकूमत है, और सबको अल्लाह ही की तरफ़ लौट कर जाना है।
आयत की सूक्ष्मताएं:
इस्लाम के नबी (स) ने कुछ यहूदियों को इस्लाम की दावत दी तो उन्होने कहा: हम अल्लाह के बेटे और दोस्त है।[19] (तफ़सीरे नमूना ने तफ़सीरे फ़ख़र राज़ी से नक़्ल किया है।)
यहूदी और ईसाई ख़ुद को अल्लाह का सगा बेटा नही मानते थे बल्कि एक तरह का बनाया हुआ बेटा कहते थे। (أَبْنَاء اللّهِ) उनकी यह बात अपने आप को बग़ैर किसी दलील के बड़ा साबित करने के लिये है।
आयत के संदेश:
1. वंश की बड़ाई और ऊच नीच और सिर्फ़ ख़ुद को और अपने गिरोह को हक़ पर समझना सही नही है। और क़ानून के ख़िलाफ़ सम्बंधों से रोका गया है। (بَلْ أَنتُم بَشَرٌ مِّمَّنْ خَلَقَ)
2. किसी आदमी, क़ौम, ज़ात, वंश वालो को अपने क्षमा कर दिने जाने पर ख़ुश नही होना चाहिये और न ही उसकी रहमत से मायूस होना चाहिये। [20](يَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاء)
3. कमबख़्त यहूदी सारे बुरे काम करने और अल्लाह की निशानियों को देखने के बावजूद ख़ुद को अल्लाह का बेटा समझते थे। मुह ज़ोरी की हद है?
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَى فَتْرَةٍ مِّنَ الرُّسُلِ أَن تَقُولُواْ مَا جَاءنَا مِن بَشِيرٍ وَلاَ نَذِيرٍ فَقَدْ جَاءكُم بَشِيرٌ وَنَذِيرٌ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ 19
अनुवाद:
ऐ अहले किताब (ईसाई व यहूदी) हमारा दूत उस वक़्त तुम्हारे पास आया जब कोई दूत नही था ताकि(जो बाते बयान होनी चाहिये) तुम्हारे लिये बयान करे, ताकि तुम (क़यामत) के रोज़ हरगिज़ यह न कह सको कि हमारे पास कोई ख़ुशख़बरी देने वाला या डराने वाला नही आया। निसंदेह वह दूत तुम्हारे पास आ चुका है बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
आयत की सूक्ष्मताएं:
फ़तरत (वह ज़माना जिस में कोई बड़ा नबी न हो) या हज़रते ईसा (अ) से पैग़म्बर इस्लाम (स) तक लगभग छ: सौ साल के फ़ासले को कहतें है।
जिस ज़माने में कोई नबी नही होता था, दुनिया अल्लाह के नबियों से ख़ाली नही होती थी, क्योकि नबीयो के जानशीन (उत्तराधिकारी) होते थे। हज़रते अमीर (अ) के शब्दों में: कभी भी दुनिया अल्लाह के नबीयों से ख़ाली नही रह सकती, चाहे उसके पास क़ुदरत हो या न हो, क्योकि अल्लाह के रास्ते को हक़ की तलाश करने वालो पर बन्द नही होना चाहिये।[21] लिहाज़ा फ़ितरत का मतलब लोगो को ऐसे ही छोड़ देना नही है।
आयत के संदेश:
1. नबीयों की ज़िम्मेदारी उन सच्चाईयों को बयान करना है कि जो छिपायी जाती हैं, जिनमें फेर बदल कर दिया गया हों या जिन्हे भुला दिया गया हो। (يُبَيِّنُ لَكُمْ)
2. नबियों का कुछ अरसे या लम्बे अरसे न होना अल्लाह की शिक्षा व्यवस्था के लिये बेहतर है।[22]
3. नबियों का आना, लोगों पर इस तरह के बहानो का रास्ता बन्द कर देता है। (مَا جَاءنَا مِن بَشِيرٍ.....अर्थात हमारे पास कोई दूत नही आया)
4. ख़ुशख़बरी देना और डराना नबियों की प्रचार के तरीक़े है।
5. मुहम्मद (स) के रसूल (दूत) होने में शक न करो (कि किस तरह एक आदमी जिसने दुनिया में न पढ़ा हो, वह छिपायी गयी और फेर बदल की गयी तालीमात को बयान कर सकता है।) इसलिये के अल्लाह हर काम पर क़ुदरत रखता है।
6. इंसान अपना रास्ता चुनने में आज़ाद है। नबीयों का काम सिर्फ़ ख़ुशख़बरी और डराना है।
وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ اذْكُرُواْ نِعْمَةَ اللّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَعَلَ فِيكُمْ أَنبِيَاء وَجَعَلَكُم مُّلُوكًا وَآتَاكُم مَّا لَمْ يُؤْتِ أَحَدًا مِّن الْعَالَمِينَ 20
अनुवाद:
और उस वक़्त को याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा: ऐ मेंरी क़ौम वालो अल्लाह की ढ़ेरो नेमतों को जो उसने तुम पर नाज़िल की है याद करो, कि उसने तुम्हारे दरमियान पैग़म्बर भेजे और तुम्हे बादशाह बनाया (और तुम अपनी जान, माल, इज़्ज़त और हुकूमत के मालिक बन गये) और तुम्हे वह चीज़ें दी जो दुनिया में किसी को नही दी थी।
आयत के संदेश:
1. नेमतों को याद रखना अल्लाह से इश्क, शुक्र और बंदगी का सबब है।
2. अल्लाह की सबसे बड़ी नेमतें पैग़म्बर, हुकूमत, क़ुदरत और आज़ादी की नेमत है।
3. लोगों को दावत देने के लिये मुहब्बत की ताक़त इस्तेमाल करना चाहिये। (يَا قَوْمِ यानी ऐ मेंरी क़ौम वालो)
4. लोगों को दावत देने से पहले उनके साथ काम करना, रहना, उन्हे अल्लाह की नेमतों को याद दिलाना चाहिये। (इस आयत में नेमतों का वर्णन हुआ है। और उसके बाद आयत में एक महत्वपुर्ण हुक्म है।)
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