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2. हमें जो कुछ नही मालूम पैग़म्बर या उनके ख़लीफा से पूछना चाहिये। (يَسْأَلُونَك)
3. असली और बुनयादी क़ानून यह है कि सभी पाक और पंसदीदा चीज़ें जाएज़ हैं। (أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ)
4. जो भी खाना या काम नाज़ाएज़ किया गया है वह ज़ाहिरी या छुपी हुई ख़राबी और नुक़सान की वजह से है। (أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ)
5. इस्लाम ऐसा दीन है जो फ़ितरत के अनुसार है। इसीलिये दिल जिस चीज़ को भी पसन्द करे और उसमें नुक़सान भी न हो वह जाएज़ है। (أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ)
6. सीखना और हासिल करना सिर्फ़ इंसानों के लिये नही है। जानवर भी सीखने के लाएक़ है। और इंसानों के क़ब्ज़े में है। (تُعَلِّمُونَهُنَّ)
7. ईल्म, कुत्ते को भी महत्वपुर्ण बना देता है और उस के महत्व को बढ़ा देता है।
8. कुत्ता थोड़ा बहुत सीखने के बाद, एक उम्र तक अपने शिकार को अपने मालिक को तोहफ़ा देता है। (أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ) लेकिन कुछ इंसानों ने सब कुछ अल्लाह से सीखा है। (عَلَّمَكُمُ اللّهُ) वह अल्लाह को क्या तोहफ़ा देगें?
9. खाने पीने का मसला महत्वपुर्ण है और उसे आसान नही समझना चाहिये। और नाज़ाएज़ शिकार, फ़ालतू शिकार और ऐसे शिकार से जो अपनी (हवस) दिल के लिये हो बचना चाहिये। (وَاتَّقُواْ اللّهَ)
الْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ حِلٌّ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلُّ لَّهُمْ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ وَلاَ مُتَّخِذِي أَخْدَانٍ وَمَن يَكْفُرْ بِالإِيمَانِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ 5
आज,सारी पाक और मनपसन्द चीज़े तुम्हारे लिये जाएज़ हो गयी है, और अहले किताब (काफ़िर) का खाना भी तुम्हारे लिये और तुम्हारा खाना उन के लिये ज़ाएज़ हो गया है। ईमान वाली, पाक दामन औरतें और अहले किताब की अच्छे चलन की औरतें तुम्हारे लिये ज़ाएज़ है मगर इस शर्त के साथ कि उन का महर उन को दे दो, और पाक चलन रहो बदकार न बनो, और न ही छुपे तौर से नाज़ाएज़ दोस्ती के बदले का पैसा हो। और जो भी ईमान से इंकार करेगा उस का कर्म निसंदेह बर्बाद हो जायेगा। और वह क़यामत में घाटे में रहेगा।
अगरचे खाने (طَعَامُ) का शब्द हर तरह के खाने को शामिल करता है लेकिन इस से पहले वाली आयत के अनुसार जो जानवरों के गोश्त के बारे में थी, उसमें क़ुर्बानी के वक़्त अल्लाह का नाम लेना ज़रुरी कहा गया था और अहले बैत(अ) की दूसरी हदीसों में इससे मुराद गेंहु, जौ, दालें ली गयी है। कुछ डिक्शनरी में जैसे इब्ने असीर, ख़लील ने कहा है: (अरब की सभ्यता में गेहु को (طَعَامُ) खाना कहा जाता था। (तफ़सीरे अल मीज़ान)
क्योंकि यह आयत, आने जाने, खाना खाने, अल्प संख्यकों के दूसरे फ़िरक़े के साथ शादी ब्याह के रास्ते को खोलती है और मुमकिन है कि मुसलमान यहूदियों और ईसाइयों की लड़कियो को पाने के लिये अपने आने जाने को रोज़ाना बढ़ाते और धीरे धीरे उन के धर्म (मज़हब) का असर उन पर होने लगता और इस्लाम के रास्ते से अलग और काफ़िर (नास्तिक) हो जाते। आयत का आँख़री हिस्सा इस बात से होशियार कर रहा है।
(أَخْدَانٍ) ख़दन की जमा है और दोस्त के अर्थ में है लेकिन आम तौर से छुपे हुए और नाजाएज़ दोस्त के लिये इस्तेमाल होता है।
आयत में मुसलमानों को अहले किताब से मेंल जोल की इजाज़त दी गयी है, क्योकि मुसलमान ताक़तवर हैं और काफ़िर मुसलमानो से मायूस हो चुके है इस लिये पहले वाली पाबंदियों की ज़रुरत नही है।
खाने के मसले में, आयत दोनो (मुसलमान व अहले किताब) को इजाज़त देती है कि एक दूसरे का खाना ख़ा सकते है। लेकिन शादी के मामले में, इस्लाम अहले किताब से लड़की लेने की इजाज़त तो देता है मगर उन को लड़की देने से मना करता है, इस लिये कि आम तौर से लड़किया अपने जज़्बात की वजह से मर्दो के असर में आ जाती है। अगर अहले किताब लड़किया मुसलमान हो जाये उन के लिये बेहतर है। लेकिन अगर मुसलमान लड़कियाँ उन का मज़हब क़बूल कर ले तो उन के लिये वह मज़हब इस्लाम से अच्छा नही है। इस लिये अहले किताब को लड़की देना जाएज़ नही है।
यहाँ पर अहले किताब से शादी से मुराद वक़्ती शादी है।(1) इस पर बहुत सी दलीलें है।(2) लफ़्ज़े (أُجُورَهُنَّ) ज़्यादातर वक़्ती शादी के महर के बारे में इस्तेमाल होता है।(3) क्योकि आयत में ज़ेना न करने और दोस्ती न करने की शर्त है जो वक़्ती शादी से ज़्यादा मुनासिबत रखती है और हमेंशा की शादी में आम तौर से ज़ेना का मसला या मर्द दोस्त रखने का मसला नही होता। हाँ, कुछ शिया और सुन्नी विध्वानों का मानना है कि अहले किताब से हमेंशा की शादी या वक़्ती शादी में कोई हर्ज नही है।
1. अहकाम और क़ानूनों में ज़माने से बेख़बर नही रहना चाहिये। (الْيَوْمَ)
2. मुम्किन है कि कोई नेमत धीरे धीरे जाएज़ या नाजएज़ हो जाये। जैसे शराब और सूद (ब्याज) धीरे धीरे नाजाएज़ हो गये और यह बदलाव बोध से ख़ाली नही है। जैसे कुछ जाएज़ चीज़ें बनी इसराईल (हज़रत मूसा (अ) की क़ौम) के ज़ुल्म की वजह से उन के लिये नाजाएज़ हो गयी। (सूरए निसा आयत 160), हज़रत ईसा (अ) ने कुछ मना चीज़ों को जाएज़ कर दिया। यह आयत सारी पाक चीज़ों को जाएज़ कहती है।
3. शादी शुदा ज़िन्दगी में, व्यापार और लेन देन से ज़्यादा फ़िक्र बदल जाने का ख़तरा है। लिहाज़ा होशियार रहो और अहले किताब को लड़की न दो।
4. पाक दामनी हर मज़हब में महत्वपुर्ण है। (وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ)
5. पाक दामनी, औरतों और मर्दों दोनों के लिये ज़रुरी है। (مُحْصِنِينَ, الْمُحْصَنَاتُ)
6. औरत, मालिकियत का हक़ रखती है। चाहे मुसलमान हो या मुसलमान न हो। (أُجُورَهُنَّ)
7. ग़ैरे मुसलमान को भी धोखा देना या लूटना मना है। (آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ)
8. अहले किताब से मेंल जोल रखना, उन के मुहल्ले में रहना, उन के देशों में सफर करना एक भूल है। इसी लिये इस आयत में, उन से मेंल जोल जाएज़ होने के बावजूद अपना ईमान सलामत रखने के लिये होशियार किया गया है।
9. छुपे हुए और नाजाएज़ ग़ैर मुसलमान दोस्त बनाना भी मना है। (وَلاَ مُتَّخِذِي أَخْدَانٍ وَمَن يَكْفُرْ بِالإِيمَانِ)
10. होशियार रहो कि व्यापारी और घरेलू मेंल जोल तुम्हारे अक़ीदे को न बदल दे। और जिस्मानी लज़्ज़त की ख़ातिर तुम अपने ईमान से हाथ न धो बैठना। (وَمَن يَكْفُرْ بِالإِيمَانِ)
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلاةِ فاغْسِلُواْ وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُواْ بِرُؤُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَينِ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُواْ وَإِن كُنتُم مَّرْضَى أَوْ عَلَى سَفَرٍ أَوْ جَاء أَحَدٌ مَّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لاَمَسْتُمُ النِّسَاء فَلَمْ تَجِدُواْ مَاء فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُواْ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ مَا يُرِيدُ اللّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَـكِن يُرِيدُ لِيُطَهَّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ 6
ऐ ईमान वालो जब भी नमाज़ के लिये खड़े होना चाहो तो अपने चेहरों और कोहनियों तक हाथो को धो, और अपने सर के कुछ हिस्से और पैर के उभरे हुए हिस्से पर हाथ फेरो और अगर नहाने की ज़रूरत हो तो ख़ुद पाक (ग़ुस्ल) करो और अगर बीमार हो या सफर में हो या पख़ाना कर लिया हो या औरतों से नज़दीकी की हो और नहाने (ग़ुस्ल या वुज़ू) के लिये पानी न हो तो मिट्टी से तयम्मुम करो, इस तरह से कि अपने हाथों को मिट्टी पर मारो और फिर उसे अपने चेहरे पर मलो। अल्लाह तुम्हारे लिये परेशानी नही चाहता बल्कि तुम्हे पाक करना चाहता है और तुम पर अपनी नेमतों को तमाम करना चाहता है। शायद इस तरह तुम उसके शुक्र करने वाले बन जाओ।
सूरए निसा की 43वीं आयत में ग़ुस्ल और तयम्मुम के मसले की तरफ़ इशारा हुआ है। और यहाँ पर उन दोनों के अलावा वुज़ू की तरफ़ भी इशारा हुआ है।
(क़याम) शब्द ज़ब (إِلَى) के साथ आये तो इरादा करने का अर्थ रखता है। (قُمْتُمْ إِلَى الصَّلاةِ) यानि नमाज़ पढ़ने का इरादा करो।
जनाबत, औरत, मर्द, फ़र्द, गिरोह सब के लिये इस्तेमाल होता है। शायद इस आयत में इस से मुराद ऐहतेलाम हो। और औरतो को छुने से मुराद, उनसे नज़दीकी हो।
(فَاطَّهَّرُواْ) से ग़ुस्ल समझ में आता है। सूरए निसा की 43वी आयत में फ़त्तहरू के बजाए तग़तसिलू इस्तेमाल हुआ है।
(إِلَى الْمَرَافِقِ) हाथ धोने की मिक़दार को बताने के लिये है न कि हाथ कैसे धोया जाए। (ऊपर से नीचे या उगलियों से कोहनियों तक)
तयम्मुम में, इबादत की आत्मा छुपी हुई है क्योकि मिट्टी पर हाथ मारना और उसे माथे पर मलना जो बदन का सबसे ऊचा हिस्सा है एक तरह से अल्लाह के सामने ख़ुद को छोटा और ज़लील दिखाना है।
जिस तरह से पानी गंदगियों को धोता है। पाक मिट्टी भी अगर सूरज की किरनें उस पर पड़ती हों तो वायरस (कीटाणु) को ख़त्म करती है।
(صَعِيدًا) सऊद से बना है और ऊची ज़मीन को कहते है। अच्छी और ऊची ज़मीनों की मिट्टियों में कीड़े या कीटाणु नही होते है या शायद इस से मुराद वह मिट्टी है जो ऊँचाईयो पर होती है।
1. पवित्र और पाक होना नमाज़ के लिये शर्त है। [13](فاغْسِلُواْ )
2. जिस तरह क़ुरआन छुने के लिये पाक होना ज़रूरी है[14]उसी तरह नमाज़ (अल्लाह के सामने) जाने के लिये भी पाक होना शर्त है।
3. अपवित्रता और गंदगी अल्लाह से नज़दीक नही होने देती।
4. जनाबत का ग़ुस्ल नमाज़ के लिये अनिवार्य है। (إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلاةِ... وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُواْ)
5. नमाज़ से पहले जो ज़रूरी चीज़ें है उनमें कुछ छूट तो हो सकती है मगर उन्हे छोड़ा नही जा सकता।
6. ग़लत रास्तों और तरीक़ों से अल्लाह पाक तक नही पहुचा जा सकता। (صَعِيدًا طَيِّبًا)
7. खाने पीने वाली चीज़ें भी पाक होना चाहिये और तयम्मुम के ज़रीये अल्लाह की तरफ़ ध्यान लगाना भी पाक मिट्टी से होना चाहिये।
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