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3-काफिरों की उम्मीद का सबसे अहम बिन्दू, मुसलमानों में मार्ग दर्शक का अंत कर देनाहै। अमीरुल मोमेंनीन (अ) के मार्ग दर्शक बन जाने से यह सुराख़ बन्द हो गया।(.....الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ)
4-अगर बाहरी दुश्मन तुम्हे छोड़ भी दे, तो तुम्हारा अंदुरूनी दुश्मन गुनाह मौजूद हैअत: अल्लाह से डरते रहो और उस का मुक़ाबला करते रहो। (فَلاَ تَخْشَوْهُمْ وَ)
5-दीन मार्ग दर्शक के बिना अधूरा है। (الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُم)
6-अगर मार्ग दर्शक के ज़रीये अल्लाह की नेमतों का मक़सद बयान न किया जाये तो नेमतेंबेकार चली जायेगीं। (وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي)
7-बिना मार्ग दर्शक का धर्म, अल्लाह का मनपसन्द मज़हब नही हो सकता है। (...وَرَضِيتُلَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا)
8-अगर दीन का पूर्ण होना, नेमतो का संपूर्ण होना, अल्लाह का राज़ी होना, काफ़िरों कामायूस होना, सब एक दिन में हुआ हो तो वह दिन अल्लाह का दिन है। क्या कहना ग़दीरजैसे दिन का जिस में ये सारी बाते जमा हो गयी हैं यही वजह है कि अहले किताब (काफिर)कहते है: अगर ऐसे दिन के बारे में हमारी किताब में लिखा होता, तो हम उस दिन ईदमनाते। अहले बैत (अ) से जो हदीसें नक़्ल हुई हैं उस में ईदे ग़दीर को सबसे बड़ी ईदकहा गया है।
9-काफिर (नास्तिक), सम्पूर्ण दीन से डरते है और मुसलमानो से मायूस होते है। उस दीन सेनही डरते, जिस का मार्ग दर्शक बुज़दिल, धार्मिक युध्द का हौसला ठंडा हो, क़ानूनबिखरे हुए हों और लोग अनेकता का शिकार हों। (الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ....الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُم
10-अगर काफिर (नास्तिक) तुम्हारे दीन से मायूस नही हुए हैं तो इसका मतलब है कितुम्हारे दीन में कमी है। (الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ... الْيَوْمَ أَكْمَلْتُلَكُم)
11-काफिर, ग़दीर के मार्ग दर्शक से पहले मायूस नही थे लेकिन रहबर बनने के बाद मायूस होगये। लिहाज़ा सारे काफ़िर एक तरफ़ और अली इब्ने अबीतालिब(अ) एक तरफ़।
12-सारी नेमतें अल्लाह के बनाए हुए मार्ग दर्शक के बग़ैर अधूरी है। (الْيَوْمَأَكْمَلْتُ... وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي)
13-जब भी काफ़िरो को मुसलमानों या इस्लाम को नुक़सान पहुचाने की फ़िक्र में देखा जाए,तो उन्हे चाहिये अपने मार्ग दर्शक को बदलने की फ़िक्र करें। (الْيَوْمَ يَئِسَالَّذِينَ كَفَرُوا)
14-दीन संम्पुर्ण है लेकिन लोग पूर्ण नही हैं। अत: लोगों को ख़ुद में सुधार करनाचाहिये। (أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ..... وَاخْشَوْنِ)
15-मुसलमान काफ़िरो की मायूसी के दिन का इन्तेज़ार कर रहे थे और ग़दीर के आने से उनकाइन्तेज़ार पूरा हो गया[9]।
16-अली (अ) का ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) बनना नेमतों का तमाम होना है और उनकी ख़िलाफत(नायब बनना) को ना मानना नेमतों का इंकार करना और उन का शुक्र अदा न करना, अल्लाहके क़हर का कारण है। [10](يَعْرِفُونَ نِعْمَتَ اللّهِ ثُمَّ يُنكِرُونَهَا) (सूरह नहलआयत 83)
17-अगर मुसलमानो ने ग़दीर के मार्गदर्शक को मान लिया होता तो पूरे इतिहास में मुसलमानोको काफ़िरो से कोई ख़तरा न होता। (فَلاَ تَخْشَوْهُمْ وَ)
18-क़ुरआन ने सबसे ज़्यादा ख़बरदार ग़लत मार्गदर्शक न चुनने के बारे में किया है।(وَاخْشَوْنِ) (وَيُحَذِّرُكُمُ اللّهُ نَفْسَهُ, (सूरह आले इमरान आयत 28)
19-चीज़ों का असर कभी किसी चीज़ के सारे हिस्से पर पड़ता है। जैसे रोज़ा, अज़ान से एकसेकेन्ड पहले भी कुछ खाने से रोज़ा टूट जाता है, इसी वजह से क़ुरआन में (तमाम) जैसाशब्द इस्तेमाल हुआ है। (أَتِمُّواْ الصِّيَامَ إِلَى الَّليْلِ) (सूरह बक़रह आयत187) और कभी हर हिस्सा असरदार होता है जैसे: क़ुरआन की आयतों का पढ़ना,इसलिये कि सबके पढ़ने में पुन्य है जितना भी पढ़ा जाए सवाब (पुन्य) है और कभी ऐसाहै कि अगर एक हिस्सा न हो तो उसके बाक़ी दूसरे हिस्से हों भी तो सब का सब बेकार होजाते हैं। जैसे: पायलेट और डराईवर इसलिये कि जहाज़ या गाड़ी उन के बग़ैर बेकार है।
सही मार्गदर्शन ऐसा ही है, क्योकि इंसान को अल्लाह से मिला देता है और उस केबग़ैर, सारी चीज़ें और नेमतें ज़हमतों में बदल जाती है। इस लिये कि इंसान को अल्लाहतक नही पहुचातीं।
अब आयत के शुरु की तरफ़ पलटते है औऱ खानों और गोश्तों के बारे में बयान करते है।
1-जिस्म और आत्मा की सलामती के लिये खाने की आवश्यकता पर क़ुरआन में बहुत ज़ोर दियागया है।
2-इस्लाम एक पुर्ण दीन है और इंसान की प्राक्रतिक और आत्मिक आवश्कताओं पर ध्यान देताहै और उन का वर्णन करता है। (حُرِّمَتْ)
3-ऐसा सम्पुर्ण क़ानून है जो इंसानों के सारे हालात और आवश्कताओं पर ध्यान देता हैजैसे आम हालात, मजबूरी, और शंक (शंका)..आदि।
4-इस्लाम के अहकाम (आदेश) की कोई सीमा नही है। (فَمَنِ اضْطُرَّ)
5-मजबूरी की हालत में जो छूट दी गयी है उसका मतलब यह नही है कि वह आज़ाद हैं और गुनाहकरें, बल्कि सिर्फ ज़रुरत भर इस्तेमाल करना चाहिये। (غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ)
6-तौहीद (अल्लाह को एक मानना) की व्यवस्था में, जानवर की क़ुर्बानी में भी अल्लाह कारंग होना चाहिये। नही तो क़ुर्बानी नाज़ाएज़ होगी। (وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللّهِبِهِ)
7-हर तरह और हर शक़्ल के शिर्क (अल्लाह के लिये शरीक मानना) से हमें लड़ना चाहिये।[11](وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ)
8-इस्लाम इंसाफ़ वाला मज़हब है। न पश्चिमी दुनिया की तरह बहुत ज़्यादा गोश्त खाने कोकहता है और न ही बौध्दों की तरह उस को नाज़ाएज कहता है और न ही चीनियों की तरह हरतरह के जानवर खाने को जाएज़ समझता है। इस्लाम में गोश्त खाने की शर्ते औऱ हदें है।जैसे:
क-गोश्त खाने वाले जानवरों को खाने से मना किया गया है, शायद इस लिये कि आम तौर से वहमुर्दे खाते हैं।
ख-दरिन्दों का गोश्त खाने से मना किया गया है। शायद इसलिये कि इंसान के अन्दरदरिंन्दगी और सख़्ती पैदा न हो जाये।
ग-ऐसे जानवर का गोश्त, जिस से आम तौर से लोग नफ़रत करते है, खाने से मना किया गया है।
घ-ऐसे जानवर का गोश्त, जिस को हलाल करते हुए अल्लाह का नाम न लिया गया हो, खाने सेमना किया गया है[12]।
9-तमाम ऐसे जानवरों में जिन का गोश्त खाना नाज़ाएज़ है। सिर्फ़ सूवर का नाम आया हैइसलिये कि उस के इस्तेमाल होता था।
10-ख़ून पीना दिल की सख़्ती और बीमारी को फ़ैलाता है इस लिये नाज़ाएज़ है। लेकिन ख़ूनलेने और देने में कोई हरज नही है।
आयत में गोश्त और खाने के मसले:
इमाम सादिक़ (अ) मुर्दे के गोश्त के बारे में कहते हैं: उस का खाने वालाकमज़ोर, दुबला, सुस्त, नस्ल ख़त्म हो जाने, दिल की धड़कन बंद हो जाने और अचानक आने वाली मौत का शिकार हो जाता है।
जाहिलियत के दौर में ख़ून पीना एक रस्म थी। यह काम दिल के सख़्त होने और रहमत कीनाबूदी का कारण बनता है। यहाँ तक कि बच्चों, माँ, बाप के मारे जाने का ख़तरा भी है।और ख़ून पीने वाला दोस्त, यार नही पहचानता है इसी तरह की हदीसें सूवर का गोश्त खानेवाले के लिये भी आयी हैं। (तफ़सीरे अलमीज़ान)
बौध्द गोश्त खाने के विरोधी हैं। और कुछ लोग हर तरह और हर जानवर का गोश्त खातेहैं। (जैसे कुत्ता, सूवर, मगरमच्छ, साँप आदि.....)
क्या जानवरों को उन का गोश्त खाने के लिये मारना, अल्लाह की रहमत के ख़िलाफ़ नहीहै?
1-दुनिया की बुनियाद चीज़ों के बदलने पर है मिट्टी से सब्ज़ी, सब्ज़ी से जानवर, जानवरका गोश्त इंसान में बदल जाता है यह एक तरह की बढ़ोत्तरी है। और इन तब्दीलियों केबदले इंसान में बढ़ोत्तरी होती है।
2-इंसान के पेट के अंदर की मशीन और उसके दाँतो की बनावट यह समझाने के लिये है किइंसान का अन्न क्या चीज़े है।
- क़ुरआन, बुतों को पूजने वालों से किये गये वादों के निभाने को भी वफा कोज़रुरी समझता है। ) (فَأَتِمُّواْ إِلَيْهِمْ عَهْدَهُمْ) (सूरह तौबा आयत 4)।
यहाँ तक कि फाजिरों (दीन से निकल जाने वाले) के वादे पर अमल को भी अनिवार्यसमझता है। इमाम सादिक़ (अ) की इस हदीस जो (उसूले काफ़ी जिल्द 2 पेज 162) में है, सेपता चलता है।
इसी तरह अगर कोई समझौता मुसलमान के कहने पर किसी दुश्मन से किया जाये तो उसको भीनिभाना उस का कर्तव्य है।, जैसे कोई काफ़िर किसी मुसलमान के कहने पर कि वहाँ अमन हैकिसी इलाक़े में चला जाए। (मुसतदरकुल वसाएल जिल्द 2 पेज 250)
2- सूरह निसा आयत 160, सूरह अन्आम आयत 146
3-बेहारूल अनवार जिल्द 16 पेज 144
- मुसलमान 80 फरसख़ (एक फरसख साढ़े चार किलो मीटर का होता है) का सफर करकेमदीने से मक्के हज करने आये लेकिन काफ़ीरों (नास्तिकों) ने हज नही करने दिया औरहोदैबिया की सुलह हुई। तो अब मक्का जीतने के बाद इन्तेक़ाम का हक़ नही है।
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