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अतयतबुल बयान में है: क्योंकि उन दोनों को लोगों ने क़त्ल की धमकी दे रखी थी, इस लिये मूसा (अ) ने कहा: ख़ुदाया मुझ में ताक़त नही है।

आयत के संदेश:

नबियों का प्रचार ज़ोर ज़बरदस्ती की बुनियाद पर नही होता। (لا أَمْلِكُ إِلاَّ نَفْسِي) अल्लाह से शिकायत और लोगों को बुरा भला उस वक़्त कहना चाहिये जब इस बात से मायूसी हो जाये कि लोग अल्लाह का हुक्म नही माँगेगें। अल्लाह के नबियों का हुक्म न मानना फ़िस्क़ (धर्म से निकल जाना) है।

قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ أَرْبَعِينَ سَنَةً يَتِيهُونَ فِي الأَرْضِ فَلاَ تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ 26

अनुवाद:

(अल्लाह ने मूसा से) कहा,बेशक पवित्र ज़मीन चालीस साल के लिये उन पर हराम कर दी गयी

(लिहाज़ा इस सुस्ती और काहिली की वजह से)चालीस साल दुनिया में भटकते रहेगें (और उस पाक ज़मीन) की दुनिया व आख़िरत की नेमतों से वंचित रहेंगे) लिहाज़ा इस बर्बाद और गुमराह क़ौम पर अफ़सोस न करो।

आयत की सूक्ष्मताएं:

(يَتِيهُونَ) तीयह से बना है और भटकने के मायनी में है। लेकिन धीरे धीरे तीयह उस सीना नामी

बयाबान को कहा जाने लगा जिसमें वह क़ौम भटक गयी थी और चालीस साल तक दुनिया व आख़िरत

की नेमतों की वंचित होने के साथ भटकती और ज़िन्दगी गुज़ारती रही।

बनी इसराईल का विरोध और अल्लाह की उनको दी गयी सज़ा का वर्णन तौरेत के सिफ़रे आदाद के चौथे हिस्से में हुआ है।

इमाम बाक़िर(अ)की हदीस के अनुसार,वह लोग चालीस साल की आवारगी और मूसा व हारून को खो देने के बाद,फ़िर से फ़ौज के साथ हमला करते हुए उस इलाक़े में दाख़िल हुए लेकिन वह आलस्य की वजह से भटकते ही रहे।

इमाम बाक़िर (अ) फ़रमाते है कि बनी इसराईल की कहानी की तरह की कहानी मुसलमानों के साथ भी पेश आयेगी।

आयत के संदेश:

कमज़ोरी और पस्ती दिखाना, हुक्म न मानना, जंग से फ़रार करने का नतीजा नेमतों से वंचित रहना और आवारगी है। (فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ) आवारगी, धर्म त्याग देने वालों के लिये एक तरह का सज़ा है।और परहेज़गारों के लिये नूर (रौशनी) व फ़ुरक़ान (क़ुरआन करीम) तोहफ़ा है। जंग पर न जाने और उससे भागने वालों को कुछ आसानियों और सहूलतों से वंचित कर देना चाहिये।

(فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ)

चालीस के अदद में एक राज़ है जो अल्लाह ईनाम और सज़ा के मौक़े पर इस्तेमाल करता है। कभी कभी नये वंश का सुधार पुराने वंश को ख़त्म करके किया जाता है। (أَرْبَعِينَ سَنَةً) नबी लोगों का हमदर्द होता है। (فَلاَ تَأْسَ) धर्म त्याग देने वालों के साथ हमदर्दी न करो। मुजरिम को धमकाना कड़वे फ़ैसले की तरह है जो लोगों और समाज के फ़ायदे के लिये है। (فَلاَ تَأْسَ)

وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ ابْنَيْ آدَمَ بِالْحَقِّ إِذْ قَرَّبَا قُرْبَانًا فَتُقُبِّلَ مِن أَحَدِهِمَا وَلَمْ يُتَقَبَّلْ مِنَ الآخَرِ قَالَ لَأَقْتُلَنَّكَ قَالَ إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللّهُ مِنَ الْمُتَّقِينَ 27

अनुवाद:

(ऐ नबी)आदम के दो बेटों की कथा लोगों के लिये वास्तविकता के साथ बयान करो। जब दोनो ने स्वार्थ त्याग कर बलिदान पेश दिया और एक का बलिदान अल्लाह ने स्वीकार कर लिया और दूसरे का रद्द कर दिया।(हाबील से स्वीकार और क़ाबील से रद्द हुआ)तो क़ाबील ने कहा मैं तुम को क़त्ल कर दूँगा। हाबील ने कहा अल्लाह सिर्फ़ परहेज़गारों से स्वार्थ त्याग स्वीकार करता है।

आयत की सूक्ष्मताएं:

शायद वास्तविकता से इस बात की तरफ़ इशारा हो कि यह वाक़ैया तौरैत में फेर बदल करके ख़ुराफ़ात के साथ पेश किया गया है और जो कुछ क़ुरआन में आया है वही सही और वास्तविक है।

हदीसों और तौरैत के सिफ़रे तकवीन के चौथे हिस्से में आया है कि हाबील के पास बकरीयों का रेवड़ था उसमें से उसने अपने बेहतरीन भेड़ को बलिदान के लिये पेश किया जबकि क़ाबील जो एक किसान था उसने अपनी खेती के सबसे खराब हिस्से को बलिदान के लिये चुना। क़ुरआन में भी है कि कभी भी ख़ैर (नेकी) तक नही पहुचेगा मगर वह जो अपनी मनपसन्द चीज़ को अल्लाह की राह में व्यय करेगा(لن تنالواالبرحتي تنفقوامماتحبون)

आयत के संदेश:

इतिहास को सीख लेने के लिये पढ़ना चाहिये। (اتْلُ) इतिहास की मुख़्य बातों को बयान करना चाहिये। (نَبَأَ) इतिहास को अफ़सानों और कहानियों से अलग करना चाहिये। (بِالْحَقِّ) अस्ल चीज़ अल्लाह से क़रीब होना है बलिदान नही, बलि में कोई भी चीज़ दी जा सकती है।

(قُرْبَانًا)

कर्मों के स्वीकार होने या ना होने में नीयत व इच्छा, स्वार्थ और आदतों को दख़ल होता है। हसद (जलन) की हद भाई के क़त्ल तक भी जा सकती है।(لَأَقْتُلَنَّكَ) कर्मों के स्वीकार होने का मेयार परहेज़गारी है। मैं और तू नही। (إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللّهُ) क़त्ल के इतिहास की शुरूआत इंसान के दुनिया में आने के साथ ही हो चुकी है। (نَبَأَ ابْنَيْ آدَمَ) स्वीकार होना या ना होना हिकमत की बुनियाद पर है अमीर ग़रीब,छोटे बड़े की वजह से नही।

(مِنَ الْمُتَّقِين)

वध करने वाले को भी अक़्ली और सही उत्तर देना चाहिये। (إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللّه) ख़ुद को सुधारना और परहेज़गार बनना सब कामों से पहले है। (إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللّه)

لَئِن بَسَطتَ إِلَيَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِي مَا أَنَاْ بِبَاسِطٍ يَدِيَ إِلَيْكَ لَأَقْتُلَكَ إِنِّي أَخَافُ اللّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ 28

अनुवाद:

(हाबील ने अपने भाई क़ाबील से कहा)कि अगर तुम मुझे क़त्ल करने के लिये हाथ बढ़ाओगे तो भी मैं तुम्हे क़त्ल करने के लिये हाथ नही बढ़ाऊगा। मैं अल्लाह से जो सारे संसार का पालने वाला है, डरता हूँ।

आयत के संदेश:

हासिदों (जलने वालों) के साथ नर्मी से पेश आकर उनके हसद की आग को नर्म बातों से बुझाना चाहिये। (لَئِن بَسَطتَ) बुराईयों से रोकने का एक तरीक़ा यह है कि गुनाह करने वालों को यह विश्वास दिलाया जाये कि उन पर ज़ुल्म व सितम नही किया जायेगा। (مَا أَنَاْ بِبَاسِطٍ يَدِيَ) हाबील का मक़सद क़त्ल हो जाना नही था बल्कि ख़ुद को बचाना भी था(इस लिये कि अपने आप को क़ातिल के हवाले कर देना तक़वे के ख़िलाफ़ है। अल्लाह के डर से किसी को क़त्ल ना करना महत्व रखता है, यह कमज़ोरी नही है। (إِنِّي أَخَافُ اللّهَ) परहेज़गारी और अल्लाह का डर इंसान को ख़तरनाक हालात में भी गुनाह और ज़ुल्म से बचाये रखता है। (إِنِّي أَخَافُ اللّهَ)

إِنِّي أُرِيدُ أَن تَبُوءَ بِإِثْمِي وَإِثْمِكَ فَتَكُونَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ وَذَلِكَ جَزَاء الظَّالِمِينَ 29

فَطَوَّعَتْ لَهُ نَفْسُهُ قَتْلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُ فَأَصْبَحَ مِنَ الْخَاسِرِينَ 30

अनुवाद:

निसंदेह मैं चाहता हू कि तुम मेंरे और अपने गुनाह से (अल्लाह की तरफ़) पलट जाओ नही तो नर्क वालो में हो जाओगे। क्योकि ज़ुल्म करने वालो की यही सज़ा है।

फिर उसके दिल ने (क़ाबील ने जलन की आग में जलते हुए) उसे उसके भाई के क़त्ल के लिये तैयार किया और उसने अपने भाई को क़त्ल कर दिया। और नुक़सान उठाने वालो में से हो गया।

आयत की सूक्ष्मताएं:

हाबील किसी का बोझ अपने सर नही लेना चाहते थे। इस लिये उन्होने अपने भाई के खून से हाथ रंगीन नही किये,बल्कि अपने बोझ को भी क़ातिल के सर डाल दिया। इमाम बाक़िर(अ)एक हदीस में फ़रमाते है(من قتل مؤمنامتعمدا اصبحت الله علي قاتله جميع الذنوب وبرالمقتول منهاوذلك قوله اني اريد ان تبوء )जो कोई भी जान बूझ कर किसी मोमिन को क़त्ल करेगा,खुदावन्दे आलम उसके सारे गुनाहों को क़ातिल के हिसाब में लिख देगा और क़त्ल होने वाले को गुनाहों से पाक कर देगा। (तफ़सीरे नूरूस सक़लैन)

लेकिन आयत का यह मतलब नही है कि ज़ालिम के मुक़ाबले में, इस वजह से कि अपने बुरे कामों को उसके ज़िम्मे लगा देगा ख़ामोश रहे।

आयत के संदेश:

क़त्ल होने वाले के बुरे काम क़त्ल करने वाले के खाते में चले जाते है। (تَبُوءَ بِإِثْمِي) क़यामत पर ईमान होना,इंसान के सबसे पुराने अक़ीदों में से एक है। (أَصْحَابِ النَّارَِ) ज़ालिम कोबुराईयो से रोकने का एक तरीक़ा यह है कि उसे समझाये कि उसे अपने बुरे कामों के अलावा जिस पर ज़ुल्म करेगा उस के बुरे कामों को भी ढोना पड़ेगा। और उसकी सज़ा डबल हो जायेगी। इंसान अगर अपनी अस्तित्व को एक बार आज़ाद छोड़ दे वह उसे हमेंशा के लिये अपना ग़ुलाम बना लेता है और उसे गुनाह का आदी बना देता है। (فَطَوَّعَتْ لَهُ نَفْسُهُ) इंसान की पाक तबीयत आदमी के क़त्ल से बेज़ार है। लेकिन उसके अन्दर का शैतान क़त्ल को छोटा काम दिख़ाकर उसे उस पर मजबूर कर देता है। (فَطَوَّعَتْ) ज़मीन पर मौत का सिलसिला शहादत से शुरु होता है। (فَقَتَلَهُ) क़ातिल ख़ुद को भी नुक़सान पहुचाता है और क़त्ल होने वाले को भी और उसके ख़ानदान व समाज को भी। क़ातिल को अन्दर अपने ज़मीर से सज़ा मिलती है और बाहर लोगों से,और उसको बदले व अदालत का सामना भी करना पड़ता है और कोई फ़ायदा नही होता। (فَأَصْبَحَ مِنَ الْخَاسِرِينَ) सही और ग़लत की जंग इतिहास में हमेंशा से रही है।

فَبَعَثَ اللّهُ غُرَابًا يَبْحَثُ فِي الأَرْضِ لِيُرِيَهُ كَيْفَ يُوَارِي سَوْءةَ أَخِيهِ قَالَ يَا وَيْلَتَا أَعَجَزْتُ أَنْ أَكُونَ مِثْلَ هَـذَا الْغُرَابِ فَأُوَارِيَ سَوْءةَ أَخِي فَأَصْبَحَ مِنَ النَّادِمِينَ 31

अनुवाद:

फिर ख़ुदा वन्दे आलम ने एक कौव्वे को भेजा ताकि वह ज़मीन खोद कर क़ातिल को दिखाये कि किस तरह वह अपने भाई की लाश को दफ़्न करे।

उसने(क़ातिल)कहा अल्लाह की लानत हो मुझ पर कि मैं कौव्वे से भी गया गुज़रा हो गया कि यह नही समझ सका कि कैसे अपने भाई की लाश को दफ़्न करू? आख़िरकार शर्मिदा हुआ।

आयत की सूक्ष्मताएं:

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