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8. जो लोग पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रहबरी के विरोधी हैं और आपके क़ानून से जंग कर रहे हैं उनका वुजूद मिटा देना ज़रुरी है।

9. जो लोग मुसलमानों के मार्गदर्शक या इस्लामी हुकूमत के ख़िलाफ़ जंग करे। वह (يُحَارِبُونَ اللّهَ) अल्लाह से जंग करने वालो में शामिल हैं। (तफ़सीर फ़ी ज़िलालिल क़ुरआन)

10. इमाम रज़ा (अ) फ़रमाते है: बुराई फ़ैलाने वालो की जिलावतनी की सज़ा एक साल है। और जिलावतनी की जगह का ऐलान होना चाहिये ताकि जिलावतन होने वाले से लोग अपना रिश्ता तोड़ लें। (तफ़सीरे नुरुस सक़लैन)

11. क़ुरआन की आयत के अनुसार सूद खाने वाले का शुमार भी (محارب) अल्लाह से जंग करने वालो में किया गया है क्यों कि वह व्यापार को नाअम्न कर देता है। और हदीसों के अनुसार मुसलमान की बेइज़्ज़ती करने को भी, अल्लाह से जंग करने के बराबर बताया गया है।

(من اهان لي وليافقدبارزني بالمحاربة)

إِلاَّ الَّذِينَ تَابُواْ مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُواْ عَلَيْهِمْ فَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ 34

अनुवाद:

मगर वह लोग जो तुम्हारे हाँथ लगने से पहले तौबा कर लें, तो तुम जान लो कि अल्लाह क्षमा (माँफ़) करने वाला और दयालू (मेंहरबान) है।

आयत की सूक्ष्मताएं:

अल्लाह से जंग करने और बुराईयाँ फ़ैलाने वालों की सिर्फ़ डराने धमकाने तक की तौबा क़बूल हो सकती है क़त्ल व डकैती की तौबा क़बूल नही हो सकती। यानी तौबा सिर्फ़ उन कामों में असर रखती है जो अल्लाह के लिये कियै जाते हैं और बन्दों के कामों में उसका असर नही होता। इसलिये कि बन्दों के कामों में उनकी मर्ज़ी ज़रूरी है। इसलिये कि जंग करने वालो का मामला अलग है और क़ातिल व डकैतों का मामला अलग। (तफ़सीरे नमूना)

आयत के संदेश:

1. तौबा की राह सबके लिये खुली हुई है।

2. यहाँ पर वह तौबा माफ़ की जायेगी जो मुजरिम के गिरफ़्तार होने और अदालत में जाने से पहले की गयी हो। (गुनाह जैसा भी हो सबमें मरने से पहले तौबा का फ़ायदा है। सूरह निसा आयत 18।

यह भी जानना चाहिये कि सज़ा में कमी या उसको ख़त्म करने के लिये सच्ची तौबा का विश्वास कर लेना ज़रूरी है। (जैसे मुजरिम के अख़लाक, व्यवहार और बातों में तब्दीली देखे या लोग उसकी शराफ़त की गवाही दें।)

3. अल्लाह की तरफ़ से दी जाने वाली सज़ायें लोगों और समाज के सुधार के लिये है इन्तेक़ाम के तौर पर नही, इसी वजह से गुनाहगारों की तौबा असरदार होती है।

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ وَابْتَغُواْ إِلَيهِ الْوَسِيلَةَ وَجَاهِدُواْ فِي سَبِيلِهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ 35

अनुवाद:

ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो (और उससे नज़दीक होने के लिये) ज़रिया तलाश करो, और उसकी राह में जंग करो ताकि तुम कामयाब लोगों में से हो जाओ।

हज़रत अली (अ) नहजुल बलाग़ा के एक सौ दसवें ख़ुतबे में फ़रमाते है: बेहतरीन साधन जिस के ज़रीये से अल्लाह से नज़दीक हुआ जा सकता है वह अल्लाह और उसके पैग़म्बर (दूत) पर ईमान रखना और उसकी राह में जंग करना, इख़लास, नमाज़ क़ायम करना, ज़कात देना, रमज़ान में रोज़ा रखना, हज व उमरा, रिश्तेदारो से अच्छा बर्ताव करना, सबके सामने और छिपाकर दान करना और नेकी (पुन्य) करना है।

आयत के संदेश:

1- अल्लाह पर ईमान रखना उससे डरना, उससे सिफ़ारिश (शिफ़ाअत) चाहना और उसकी राह में जंग करने में ही कामयाबी और भलाई है।

2- कामयाबी हासिल करने के लिये गुनाहों को छोड़ना भी ज़रूरी है और उसके हुक्म को मानना भी। (...اتَّقُواْ اللّهَ وَابْتَغُواْ إِلَيهِ الْوَسِيلَةَ)

3- अच्छे काम तमाम भलाईयों की जड़ है। मगर यह कि हम उस जड़ को अपने गुनाहों से काट ना दें। (لَعَلَّكُمْ)

4- अहले बैत (नबी (स) और उनके घरवाले) (अ) ही अल्लाह की मज़बूत रस्सी और उस तक पहुचने का ज़रीया है।[28]

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِي الأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لِيَفْتَدُواْ بِهِ مِنْ عَذَابِ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنْهُمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ 36 يُرِيدُونَ أَن يَخْرُجُواْ مِنَ النَّارِ وَمَا هُم بِخَارِجِينَ مِنْهَا وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ 37

अनुवाद:

निसंदेह काफ़िरों को अगर जो कुछ ज़मीन पर है और इसी तरह दूसरी सारी चीज़ों को (जो ज़मीन से डबल हों) दे दीं जायें। और वह क़यामत के दिन सज़ा से बचने के लिये अपना सब कुछ दें दें। तब भी उन्हे माँफ़ नही किया जायेगा। बल्कि उन्हे दर्दनाक सज़ा दी जायेगी।

और वह लोग हमेंशा उस नर्क की आग से बाहर आना चाहेंगे मगर निकल नही पायेंगे और उनके लिये हमेंशा की सज़ा है।[29]

आयत के संदेश:

1- माल व दौलत सिर्फ़ इस दुनिया तक है। उस दुनिया में इसका कोई फ़ायदा नही है। (مَا تُقُبِّلَ)

2- अल्लाह की अदालत में नर्क से बचने के लिये कोई चीज़ स्वीकार नही की जायेगी। (مَا تُقُبِّلَ)

3- काफ़िरों का ठिकाना नर्क है।और उन्हे कभी भी माफ़ नही किया जायेगा।

4- कामयाबी का राज़ ख़ुद इंसान के अन्दर छिपा हुआ है। उसके लिये धन दौलत की ज़रुरत नही है।

5- काफ़िरों को हमेंशा के लिये मिलने वाली सज़ा ना किसी चीज़ से बदली जा सकती है और ना ही वक़्त गुज़रने से ख़त्म हो सकती है। (وَمَا هُم بِخَارِجِينَ مِنْهَا)

6- निजात के सारे रास्ते काफ़िरो के लिये बंद कर दिये गये हैं। इस लिये उन तक अल्लाह की रहमत नही पहुच सकती। क्योकि उसकी रहमत उसके परहेज़गार बन्दों के लिये है। (رحمتي وسعت كل شي فساكتبهاللذين يتقون ) सूरह आराफ़ आयत 156, न ही काफ़िरो को अल्लाह की शिफ़ाअत (सिफ़ारिश) नसीब होगी। क्योंकि उसकी शिफ़ाअत उसके उन बन्दों के लिये है जिनसे वह राज़ी है। (لاتنفع الشفاعة الامن اذن له الرحمن ورضي له قولا) सूरह ताहा आयत 109, और उनकी मौत का भी कुछ नही पता। हमेंशा ज़िन्दा आग में जलते रहेगे और मौत की दुआ करेगे जो कभी क़बूल नही होगी। ( نادوا يامالك ليقض علينا ربك قال انكم ماكثون) सूरह ज़ुख़रफ़ आयत 77।

7- जो लोग भी दुनिया में दलील और समझाने के बावजूद शिर्क के अंधेरे से बाहर नही निकले वह उस दुनिया में भी नर्क से कभी बाहर नही निकल पायेंगें। (وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ)

وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ فَاقْطَعُواْ أَيْدِيَهُمَا جَزَاء بِمَا كَسَبَا نَكَالاً مِّنَ اللّهِ وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ 38

अनुवाद:

चोर और चोरनी के हाथ काट दो। यह अल्लाह की तरफ़ से उनकी सज़ा है। निसंदेह अल्लाह शक्ति और बोध वाला है।

आयत की सूक्ष्मताएं:

आयत में पहले चोर फिर चोरनी का नाम आया है। (وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ) लेकिन सूरह नूर की दूसरी आयत में जहाँ ज़ेना का हुक्म बयान हुआ है, पहले ज़ेना करने वाली औरत का ज़िक्र हुआ है फिर मर्द का, ( الزَّانِيَةُ وَالزَّانِي) शायद ऐसा इसलिये हो कि चोरी में मर्द का रोल ज़्यादा होता है और ज़ेना में औरत का।

सैय्यद मुर्तुज़ा अलमुल हुदा से (एक हज़ार साल पहले पूछा गया) क्यों हाथ जिसकी क़ीमत दीयत (बदले के तौर पर देने में) पाँच सौ सोने के सिक्के है, एक चौथाई तोले सोने की चोरी की वजह से काट दिया जाता है? उन्होने जवाब दिया अमानत की वजह से हाथ की क़ीमत बढ़ जाती है और विश्वासघात की वजह से घट जाती है।

हदीसों के बयान के अनुसार हाथ की सिर्फ़ चार उंगलियाँ काटी जायेगीं। हथेली और अगूठाँ नही काटा जायेगा। चोरी का माल जिसके लिये चोर का हाथ काटा जायेगा उसकी क़ीमत कम से कम सोने के एक चौथाई तोले के बराबर होनी चाहिये। और माल भी किसी सुरक्षित जगह पर रखा होना चाहिये सराय, बाथँरूम, मस्जिद, या किसी ऐसी जगह पर नही, जहाँ सब लोग आते जाते हों। और सज़ा का आदेश हो जाने के बाद चोरी का माल उसके मालिक तक पहुच जाना चाहिये। और चोर को मालूम होना चाहिये कि चोरी की सज़ा में हाथ काट दिया जाता है। अगर उसे यह मालूम नही था तो उसका हाथ नही काटा जायगा। इसी तरह अगर चोर अपने साथी का माल चुरा ले या सूखा पड़ने की वजह से मजबूरी में खाने पीने का सामान चुराये या..... तो उसका हाथ नही काटा जायेगा। इसी तरह बाप का अपने बेटे के माल से चुराना, ग़ुलाम का अपने मालिक के माल से चुराना, नाबालिग़ बच्चे, दीवाना या कोई यह समझ कर चुराये कि उसे चुराने का हक़ है तो इन सब मौक़ों पर चोर का हाथ नही काटा जायेगा। बल्कि दूसरी सज़ायें दी जायेगी।

पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम) ने एक हदीस में फ़रमाया कि सबसे बुरी चोरी यह है कि इंसान नमाज़ की चोरी करे या नमाज़ के रूकू और सजदे को पूरी तरह न करे। (तफ़सीरे क़ुरतुबी) और कुछ उलामा के बयान में आया है कि क्यों मुसलमानों में से कुछ लोग सूरए हम्द पढ़ने से पहले (بسم الله الرحمن الرحيم ) की चोरी करते हैं?।

चोरी में हाथ का काटना पहली दफ़ा में है। जब कि दूसरी बार में बायाँ पैर टख़ने के नीचे से काटा जायेगा। तीसरी बार में उम्र क़ैद की सज़ा और चौथी दफ़ा में फाँसी दे दी जायेगी। (तफ़सीरे साफ़ी व तफ़सीरे मजमऊल बयान)

आयत के संदेश और नुक्ते:

1- सिर्फ़ बड़े जुर्मानों और सज़ाओं से ही चोरी को रोका जा सकता है। (فَاقْطَعُواْ أَيْدِيَهُمَا)

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