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- जैसे अगर ईल्म हासिल करना नेकी है तो उसके रास्ते : स्कूल, किताबख़ाना,लेबोरेटरी, किताब, आने जाने के लिये गाड़ी, उस्ताद की तर्बीयत (टेर्निग), उस्ताद(शिक्षक) और शागिर्द (छात्र) को शौक़ दिलाना...सब नेकी की राह में मदद करना है।
- जैसे शराब बनाने वाले को अन्गूर ना बेचे, बदमाश तक हथियार न पहुचने दिया जाए,कमीने लोगो को राज़ ना बताया जाए, गुनाह करने वाले पर हँसा ना जाए।
-नुकता: सूरए बक़रा की 177 वी आयत में (बिर्र) नेकी के जगहे बयान हुई है।
لَّيْسَ الْبِرَّ أَن تُوَلُّواْ وُجُوهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِوَلَـكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَالْمَلآئِكَةِوَالْكِتَابِ وَالنَّبِيِّينَ وَآتَى الْمَالَ عَلَى حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَىوَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَالسَّآئِلِينَ وَفِيالرِّقَابِ وَأَقَامَ الصَّلاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَالْمُوفُونَ بِعَهْدِهِمْإِذَا عَاهَدُواْ وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاء والضَّرَّاء وَحِينَ الْبَأْسِأُولَـئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا وَأُولَـئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ
बिर्र (नेकी) अल्लाह, क़यामत, फरिश्तों, आसमानी किताब, नबियों पर ईमान और समाजके कुचले हुए लोगों की मदद करना, समझौतों पर पाबंद रहना, कामों में सब्र करना नेकीपर मदद करना है।
बहुत सी हदीसों में नेकी पर मदद करना और मज़लूमों व ग़रीबों की मदद करने कीसिफ़रिश की गयी है और ज़ालिमों की मदद करने से मना किया गया है। हम यहा कुछ हदीसोंको नमूने के तौर पर ला रहे है।:
किसी मुसलमान की मदद करना, एक महीने के सुन्नती रोज़ों और ऐतेकाफ़ (अल्लाह कीइबादत के लिये मस्जिद में रहना) से बेहतर है। (वसाएल अल शिया जिल्द 11 पेज 345)
इमाम सादिक़ (अ) कहते है: जो कोई किसी को मदद पहुचाने के लिये क़दम बढ़ाता है उसका पुन्य श्रत्रिय (जंग में जाने वाले सिपाही) की तरह है। (वसाएल जिल्द 8 पेज 602)
दूसरी हदीस में इस तरह कहा गया है: जब तक इंसान दूसरों को मदद करने की फिक्र मेंरहता है अल्लाह उस की मदद करता है। (वसाएल जिल्द 8 पेज 586)
ज़ालिम की मदद करने वाला ख़ुद भी ज़ालिम है। (वसाएल जिल्द 11 पेज 345)
हदीसों में ये कहा गया है कि मस्जिद बनाने में भी ज़ालिम से मदद न ली जाए।(वसाएल जिल्द 12 पेज 130)
- जाहिली के दौर की परम्परा: शर्त लगाने के बाद एक जानवर ख़रीदा और काटा जाताथा, फिर दस लकड़ी के तीर (बाण) को एक थैले में रखते थे, उन में से सात तीरों पर(जीतने वाले) और तीन तीरों पर (हारने वाले) लिखा जाता था तब क़ुरआ (नामो की पर्चीडाली जाती थी) के ज़रीये थौले से एक एक लकड़ी निकाली जाती थी। और वह सारा गोश्त उनसात लोगो का हो जाता था जिन के नाम (जीतने वाले) तीर निकलते थे और जानवर की क़ीमतहारने वाले तीनों लोगों को देना पड़ती थी, जबकि गोश्त में से उनको कुछ भी नही मिलताथा। इस तरह के जानवर का गोश्त क़ुरआन ने हराम (नाज़ाएज़) क़रार दिया है।इस वाक़ेआसे मालूम होता है: अज़लाम, क़ुरआ (नामो की परची डालना) वाली लकड़ियों को कहते है।
- सूरए बक़र: की 109 वी आयत में काफ़िरों का मुसलमानों को अपने रास्ते से गुमराहकरने का वंर्णन हुआ है। अल्लाह ने हुक्म दिया: तुम अल्लाह का हुक्म आ जाने तक सब्रकरो। इस लिये मुसलमान अल्लाह के हुक्म का जो काफ़िरों को मायूस करने वाला था,इन्तेज़ार कर रहे थे ।
- क़ुरआन में आया है: (فَكَفَرَتْ بِأَنْعُمِ اللّهِ فَأَذَاقَهَا اللّهُلِبَاسَ الْجُوعِ وَالْخَوْفِ بِمَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ) (सूरह नहल आयत 112)
- मुर्तियाँ, ऐसे पत्थरो को कहा जाता था जिन पर शक्लें बनी होती थीं। लेकिन(नुसुब) बग़ैर शक्ल वाले पत्थरो को कहते थे जो काबे के चारों तरफ लगे हुये थे औरउसके सामने क़ुर्बानी के जानवर काटे जाते थे और उन के ख़ून को उन पत्थरों पर मलाजाता था।
- क्योकि जानवरो के मरने के वक़्त ख़ून सबसे ज़्यादा खराब होता है और ज़हरफैलाता है इसी लिये ऐसे जानवर जिन का दम घुटने से, सीग लगने से, गिरने से, मार खानेया घसीटने से मरते वक़्त पूरा ख़ून ना निकल सका हो इस्लाम ने नाज़ाएज़ करार दियाहै। (तफ़सीरे नमूना)
- हदीस में है: (لا صلاۃ الا بطھور) नमाज़ तहारत (वुज़ु, ग़ुस्ल, तयम्मम) केबग़ैर सही नही है।
- (لَّا يَمَسُّهُ إِلَّا الْمُطَهَّرُونَ) (सूरह वाक़ेया आयत 79)
- इमाम रेज़ा (अ) वुज़ू के बारे कहते है : یکون العبد طاھرا اذا قام بین یدیالجبار (अल्लाह के हुज़ूर में खड़े होने के लिये एक तरह की पाकीज़गी और अदब है।)
مطیعا لہ فیما امرہ (एक तरह की बन्दगी और इताअत है)
نقیا من الادناس (बुराईयों से दूरी है।)
ذھاب الکسل و طرد النعاس (बेहाली और सुस्ती से दूरी है।)
و تذکیۃ الفواد(नमाज़ के लिये तैयार होना और आत्मा को मज़बूत करना है) वसाएल अशशिया जिल्द 1 पैज 257 तफ़सीरे नमूना से नक़्ल।
- मुसनदे इमाम अहमद इब्ने हम्बल जिल्द 1 पेज 398 और दूसरी किताबों में ।
- सूरए तौबा की 77 वी आयत में है कि वादा तोड़ना रंजिश पैदा होने का कारण है।
- सूरए सफ़ आयत 14
- अल्लाह के बेटे और दोस्त होने का दावा इंजीले युहन्ना बाब 8, जुमला 41 में भीकिया गया है।
- अंबीया का क़त्ल, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के आने की ख़बरों को छुपाना, वादों कोतोड़ना, आसमानी किताबों में रद्दो बदल करना, शहर में दाख़िल होने से डरना, गौसालाको पूजना, बहाने बाज़ी करना, ख़्वाहिशों पर जान देना, एक नहर का पानी पीने पर सर्बन करना, उनके बुरे कामों के नमूने और अल्लाह की उन्हे दी हुई सज़ाये, पहाड़ का अपनीजगह से उखड़ जाना, चालीस साल आवारा फिरना, उनका मसख़ (जानवरो की शक्ल में हो जाना)शमिन्दगी..... यह सब अल्लाह की उन्हे दी हुई सज़ाओ के नमूने है।
- नहजुल बलाग़ा, कलिमाते क़िसार 147
- इतिहास में इसके नमूने: हज़रते मूसा (अ) का लोगो से जुदा होना, नबीयों काऐतेकाफ़ (मस्जिद में कई दिन इबादत के लिये रहना) करना, पैग़म्बरों पर वहीय न आना,ग़ैबते सुग़रा व कुबरा। (कुछ अरसे या लम्बे अर्से लोगों से ग़ायब रहना)
- नेमतें जैसे: दरिया ए नील पार करना, कोहे तूर का उखड़ जाना, मन व सलवा(आसमानी खाना) आना, पानी की बारह नहरे जारी होना........ बनी इसराइल को दी गयी ख़ासनेमते थी।
- इसके अलावा जालूत के क़िस्से में हमने पढ़ा कि: हम जालूत से लड़ने की ताक़तनही रखते। (لاَ طَاقَةَ لَنَا الْيَوْمَ....) सूरह बक़रा आयत 249
- सुरए अनफ़ाल की चौबीसवीं आयत में भी इस बात का ज़िक्र कि पैग़म्बर की दावतज़िन्दगी बख़्शती है, हुआ है। (دَعَاكُم لِمَا يُحْيِيكُمْ)
- हाथ और पैर उतने ही काटे जायेगे जितने चोर के काटे जाते है। (हाथ की उँगलिया)उलटे तौर पर यानी दाहने हाथ की उँगलिया और बाये पैर की।
- तफ़सीरे अलमिज़ान में है कि चार सज़ाओं में से एक को चुनने का इमाम को हक़ हैऔर अगर क़त्ल होने वाले के वारिस चाहे तो माफ़ कर सकते है और उस समय सिर्फ़ एक सज़ादी जायेगी।
- हदीसों में वसीला इमाम के मायनी में इस्तेमाल हुआ है। (تقربوا بالامام)(तफ़सीरे साफ़ी) और दूसरी जगह पर इस तरह आया (ھم العروۃ الوثقی والوسیلۃ الی اللہ)(तफ़सीरे साफ़ी)
तवस्सुल, ऐसा विषय है। जो अकसर अहले सुन्नत की हदीसों की किताबों में आया है।जैसे सवाएक़े इब्न् हजर, सोनने बहीक़ी, सहीहे दारेमी, में इस बारे में हदीसें है औरवफ़ाऊल वफ़ा की भी तीसरी जिल्द पेज 1371 पर भी हदीस आयी है।
और सूरह निसा की 64वी, सूरह युसुफ़ की 97वी,और सूरह तौबा की 114वी यह सारी आयतेंभी तवस्सुल पर रौशनी डालती है।
- सूरह हज की 22वी आयत है कि जब भी वह लोग नर्क की आग से निकलना चाहेंगें औरग़म से छुटकारा पाना चाहेंगें दोबारा नर्क की तरफ़ पलटा दिये जायेंगें। (كُلَّمَاأَرَادُوا أَن يَخْرُجُوا مِنْهَا مِنْ غَمٍّ أُعِيدُوا فِيهَا وَذُوقُوا عَذَابَالْحَرِيقِ)
3-इंसाफ़ हर जगह अच्छा है, मगर रहमत हर जगह अच्छी नही है, नही तो जंग और बदला लेने कीकोई ज़रुरत ही नही थी।
4-जानवर काटते वक़्त जिन चीज़ों का ख़्याल रखा जाता है वह सख़्ती या ज़ुल्म से अलगहै। जैसे यह कि छुरी तेज़ हो, जानवर को फ़ालतू तकलीफ़ न हो, काटने से पहले पानीपिलाना, जान निकलने से पहले उसके टुकड़े न करना।
يَسْأَلُونَكَ مَاذَا أُحِلَّ لَهُمْ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ وَمَاعَلَّمْتُم مِّنَ الْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُاللّهُ فَكُلُواْ مِمَّا أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَاذْكُرُواْ اسْمَ اللّهِ عَلَيْهِوَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ 4
(ऐ पैग़म्बर) तुम से पूछते हैं कि उन के लिये कौन सी चीज़ें हलाल (ज़ाएज़) कीगयी है, उन से कह दीजीये कि सारी पाक चीज़े तुम्हारे लिये जाएज़ हैं, और जो कुछतुमने शिकारी जानवरों को सिखा रखा है, जबकि तुम शिकारी कुत्तों को सद्धाने वाले होतो जो कुछ अल्लाह ने तुम्हे सिखाया है तुम उन को सीखाते हो तो तुम्हारे शिकारीकुत्ते जो कुछ शिकार कर के लायें उस का खाना तुम्हारे लिये जाएज़ है और उन को शिकारके लिये भेजते वक़्त अल्लाह का नाम ज़रुर लिया करो और अल्लाह से डरो कि वह बहुतजल्दी हिसाब लेने वाला है।
शियों के अनुसार मुकल्लेबीन के शब्द को देखते हुए, सिर्फ़ सद्धाए हुए कुत्ते काशिकार करके लाना जाएज़ है। (न कि हर जानवर जो शिकार करके लाये) वह भी वह जानवर किजिस के लिये कुत्ते को भेजा गया हो और उसे पकड़ ले। यह नही कि कुत्ता ख़ुद जायेशिकार करे नोचे खाये और बचा खुचा आप के पास ले आए। यह जाएज़ नही है।
जवारेह(बदन के हिस्से) जारेहा की जमा और जरह शब्द से बना है, इसका अर्थ कमाना,हासिल करना और ज़ख़्म (घाव) आदि है। शिकारी जानवरों को जारेहा कहते है क्योंकि वहशिकार को ज़ख़्मी करता है या शायद इसलिये कि वह अपने मालिक के लिये शिकार कमाता है।और बदन के हिस्सों को भी इसी लिये जवारेह कहा जाता है कि कोशिश व कमाई का ज़रीयाहोते हैं।
1. पैग़म्बर, समाज के सारे सवालों और ज़रुरतों काज़िम्मेदार है। (يَسْأَلُونَك)
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