जनाब मौलाना सैयद ज़ीशान हैदर जवादी

विलादत

जनाब मौलाना सैयद ज़ीशान हैदर जवादी मरहूम की विलादत 22 रजब –उल- मुरज्जब को सन् 1357 हिज़री क़मरी में ज़िला इलाहबाद के क़स्बा क़रारी में हुई। आपके वालिद जनाब मौलाना सैयद मुहम्मद जवाद एक क़ाबिल इंसान थे। उन्होंने जामिआ नाज़मिया से मुमताज़ –उल- फ़ाज़िल करने के बाद अपनी पूरी ज़िंदगी दर्स व तदरीस और तबलीग़े दीन में सर्फ़ की थी।

तालीम

आपकी तालीम का आग़ाज़ तीन साल के सिन में क़स्बा करारी के मदरस -ए- अमजदिया में हुआ। तीन साल मदरसे में पढ़ने के बाद आपने करारी कालिज में दाख़िला लिया और पाँच साल वहाँ इल्म हासिल किया। चूँकि आपको इल्मे दीन से दिलचस्पी थी, इस लिए आपने इल्मे दीन हासिल करने के लिए लख़नऊ के मदरस -ए- नाज़मिया में दाखिला लिया और पाँच साल में मौलवी, आलिम और क़ाबिल के दर्जों को पास किया।

1955 में आप इराक़ तशरीफ़ ले गये और होज़े इल्मिया नजफ़ में रहते हुए उस ज़मान के बुज़ुर्ग उलमा से इल्मे दीन हासिल किया। आपने दस साल नजफ़ में रहकर आयतुल्लाहिल उज़मा हकीम, आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ूई और  आयतुल्लाहिल उज़मा शहीद सद्र से कस्बे फ़ैज़ किया।

क़ुरआने करीम का तर्जमा

नजफ़े अशरफ़ के क़ियाम के दौरान मौलाना मौसूफ़ के दिल में क़ुरआने करीम की तफ़्सीर लिखने की तमन्ना पैदा हुई और यह तमन्ना परवान चढ़ती रही। जब सन् 1987 में आपको मौक़ा मिला तो आपने इसी तमन्ना के तहत और कुछ उलमा के हुक्म पर क़ुरआने करीम का तर्जमा किया और साथ ही साथ मुख़तसर तफ़्सीर भी लिखी। ख़ुदावन्दे आलम मरहूम की इस काविश को कबूल फ़रमाये और उनके लिए ज़रिय -ए- निजात क़रार दे। आपका तर्जमा दौरे हाज़िर में उर्दू ज़बान के अहम तर्जमों में शुमार होता है।